Wednesday, June 26, 2019

VEER TEJAJI JAT KATHA सत्यवादी वीर तेजाजी जाट कथा भाग - 2

 VEER TEJAJI JAT KATHA

सत्यवादी वीर तेजाजी जाट कथा भाग - 2


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VEER TEJAJI
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे तेजाजी को बालपने में ही अपने विवाह हो जाने की जानकारी मिलती है और वे अपनी ब्याहता पेमल को लेने शहर पनेर पहुँचते है, जहाँ सासु बोदलदे उनका अपमान करती है, जिससे नाराज तेजाजी वापस लौट रहे थे कि लाछां गूर्जरी ने आकर उन्हें रोका और अपने यहाँ 'लाछां की रंगबाड़ी' में रुकने का निमंत्रण दिया । अब आगें............
श्री सत्यवादी वीर तेजाजी जाट कथा 1

लाछां दौड़कर तेजाजी के पीछे गई और उन्हें रोका । तेजाजी ने वापस रायमल जी की पोळ लौटने से मना कर दिया । तब लाछां गूर्जरी ने तेजाजी को अपने घर लाछां की रंगबाड़ी में रोका ।
पेमल ने अपनी माँ को काफी बुरा भला कहा और पिता रायमल जी को जब इसका पता चला तो वो लाछां की रंगबाड़ी तेजाजी को मनाने पहुंचे । तेजाजी ने वहीँ रुकने का फैसला किया ।
तेजाजी के लाछां की रंगबाड़ी में रुकने से बोदलदे की योजना असफल रही और बोदलदे लाछां से क्रोधित हो गई ।

बोदलदे ने तत्काल अपने धर्मभाई कालिया मीणा से सम्पर्क किया और लाछां की सभी गायों को चुराने का आग्रह किया । कालिया मीणा का तो काम ही यही था और यहाँ तो रखवाले ही चोरी करने का निमंत्रण दे रहे थे, इससे अच्छी बात क्या हो सकती थी, कालिया मीणा इसके लिए खुशी खुशी तैयार हो गया ।
बोदलदे ने कालिया मीणा को आश्वस्त किया कि उसे रोकने के लिए पनेर से कोई नहीं आयेगा ।

आज तो मौसम भी चोरों के लिए मुनासिब था, बरसात हो रही थी और रह रहकर बिजलियाँ चमक रही थी । कालिया मीणा ने रात्रि में लाछां की गायें चुरा ली, परन्तु आज तेजाजी 'लाछां की रंगबाड़ी' में सो रहे थे इसलिए, लाछां और उसका पति नंदू भी गायों के बाड़े में बनी झोपड़ी में सो रहे थे । गायों के घेरने की खड़बड़ाहट से वे जाग गए, नंदू ने जब प्रतिरोध की तो चोरों ने उसे भी पीटा और भाग गए । लाछां ने चोरी की सूचना मुखिया रायमलजी तक पहुंचाने की कोशिश की परंतु बोदलदे जो इसके लिए तैयार थी उसने बाहर से ही लाछां को भगा दिया ।

लाछां जानती थी कि जितना समय बीतता जायेगा, उसकी गायों का वापस मिलना भी उतना ही मुश्किल होता जायेगा । रोती-बिलखती लाछां ढोली के घर पहुँची और उससे "बार" का डाका ( पुराने जमाने में युद्ध की तैयारी के लिए ढोल को खास लय में बजाया जाता था, ताकि गांव वाले सतर्क हो जाये ) बजाने का अनुरोध किया, परंतु ढोली ने भी उसे मना कर दिया क्योंकि बोदलदे ने उसे पहले ही धमका रखा था ।

निराश और रोती हुई लाछां अपने पति के पास पहुँची और उसे लेकर अपने घर ' लाछां की रंगबाड़ी ' पहुंची, जहां तेजाजी सो रहे थे । लाछां नंदू के साथ घर के बाहर बैठ कर रोने लगी ।

लाछां के रोने की आवाज सुनकर तेजाजी की नींद खुल गई और कारण जानने के लिए तेजाजी बाहर निकले । रंगबाड़ी के दरवाजे के बाहर बने चबूतरे पर नंदू लेटा हुआ था और उसके नजदीक बैठी लाछां रो रही थी ।

तेजाजी की नींद लाछां के रोने से खुल गई और उन्होंने लाछां से रोने का कारण पूँछा । लाछां ने गायें चोरी होने की बात बताई ।

" तुम चिंता मत करो लाछां ! तेजा जाट तुम्हारी एक एक गाय को वापस लेकर आयेगा ।" तेजाजी ने मूँछ मरोड़ी और अपने पाँचो हथियार ( भाला, तीर, कमान, तलवार और कटार ) उठा लिए । अंधेरे में लीलण तेजा के इशारे पर चोरों के भागने की दिशा में बढ़ गई ।


नागदेवता को वचन



अंधेरे में चमकती बिजली की चमक में तेजा गायों के निशानों का पीछा करते हुए आगें बढ़ रहा था । वर्तमान सुरसुरा के नजदीक तेजाजी को बिजली गिरने से एक जगह आग लगी हुई दिखाई दी । आग में एक नाग-नागिन का जोड़ा फंसा हुआ था, जिसमें से बिजली गिरने से नागिन मर चुकी थी और नाग भी जलने वाला था । तेजाजी ने जीव दया करते हुए भाले की नोक से नाग को आग के घेरे से बाहर निकाल दिया । नाग को तेजाजी द्वारा खुद को बचाना नागवार गुजरा और गुस्से में तेजाजी को काटना चाहा ।



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तेजाजी बोले " हे नागराज ! मैने तो आपका भला ही चाहा है और आप मुझे ही डसना चाहते हैं ?"

" तेजा ! तुमने मेरे को बचा कर बहुत बडा अन्याय किया है । अभी मैं आग में मर जाता तो सीधा बेकुंठ जाता । अब मैं बिना मेरी नागिन के सैकड़ों वर्षों तक जमीन पर घिसटता रहूँगा । मैं तुम्हें डसकर अपना बदला लूँगा ।" नाग बोला

" नागराज ! अभी तो मैं लाछां को दिये वचनों का पालन करने चोरों के पीछे जा रहा हूँ । मैं 8 पहर में वापस लौट कर आऊँगा । मैं चांद, सूरज, और इस खेजड़े के वृक्ष को साक्षी मानकर वचन देता हूँ ।" तेजाजी के वचन देने पर नाग ने रास्ता छोड़ दिया

चोरों से सामना और गायों के साथ वापसी



तेजाजी लीलण पर बैठकर मीणाओं के पीछे चल दिये । वर्तमान तिलोनिया गांव के नजदीक तेजाजी ने दो चोरों को मारा ( वर्तमान में भी यहाँ उनकी देवलिया स्थापित है ) ।


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मंडावरिया की पहाड़ियों के नजदीक कालिया मीणा ने डेरा डाल रखा था । तेजाजी ने कालिया मीणा को ललकारा और गायों को छोड़ने का प्रस्ताव रखा । तेजाजी को अकेले देख कालिया मीणा हँसा और ढाई सौ के करीब मीणा साथियों के साथ तेजाजी पर हमला कर दिया ।

विश्व के इतिहास में इससे भयंकर युद्ध नहीं हुआ । एक तरफ ढाई सौ चोर और दूसरी तरफ शेषनाग के अंश तेजाजी जाट । तेजाजी का बिजलसार का भाला चमका और देखते ही देखते मीणाओ की तादात कम होने लगी । कालिया मीणा अपने गिरोह का नाश होते देख मैदान छोड़ भागा । भागते भागते लाछां की गायों में से एक बछड़ा ले गया और मंडावरिया की पहाड़ियों में छुप गया ।

चोरों के भागते ही तेजाजी ने लाछां की गायें संभाली और वापस पनेर की राह पकड़ ली । सवेरा होते होते तेजाजी लाछां की गायों को लेकर वापस पनेर पहुंच गए ।


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लाछां अपनी गायों को देख बहुत खुश हुई, परंतु जल्दी ही पता चला कि एक बछड़ा " काणा केरड़ा " गायों के साथ वापस नहीं लौटा । तेजाजी ने लीलण को वापस मोड़ा और "काणा केरड़ा" लेने चल दिये ।

इधर कालिया मीणा तेजाजी के गायें लेकर जाने के बाद मंडावरिया की पहाड़ियों से निकला और सौ के करीब जो जीवित बचे साथी थे उनके साथ नरवर की पहाड़ियों की ओर बढ़ गया । जहाँ उसका पुराना मित्र बालिया काला था जो तेजाजी से उसकी हार का बदला लेने में सहायता कर सकता था ।

तेजाजी जब मंडावरिया की पहाड़ियों के नजदीक पहुंचे वहाँ मारे गए चोरों की लाशों के सिवा कोई नहीं था । तेजाजी ने वहाँ काणा केरडा की तलाश की और जब नहीं मिला तो गीली जमीन पर चोरों के जाने की दिशा में बढ़ गये ।

कालिया मीणा और बालिया काला दोनों नरवर की पहाड़ियों के नजदीक मिले और एक दूसरे का हाल जाना । कालिया ने जब बालिया काला से सहायता मांगी तो उसने मदद करने की हामी भरी । कालिया मीणा के ख़बरियो ने सूचना दी कि तेजाजी उन्हें ढूँढते हुए इसी तरफ आ रहे है ।

कालिया मीणा, तेजाजी के पराक्रम से वाकिफ था । उसने आमने सामने की लड़ाई के बजाय बालिया काला के साथ नरवर की घाटी के दोनों तरफ छुपकर तेजाजी पर हमला किया । दोतफरा और घात लगाकर किये हमले से तेजाजी बुरी तरह घायल हो गए,  जगह जगह से लहू रिसने लगा, परंतु उनका भाला पूरी तेजी से चलता रहा, यहाँ लीलण ने भी अपना द्रोण रूप दिखाया कई चोर लीलण के खुरों का निशाना बने । घायल तेजाजी ने कालिया-बालिया के सम्पूर्ण गिरोह का नाश किया, दोनों पापियों का वध किया और काणा केरडा को लेकर पनेर के लिए रवाना हुए ।

पनेर पहुंचकर तेजाजी ने लाछा गुर्जरी को काणा केरडा सौंपा और लीलण को वापस ( वर्तमान सुरसुरा में ) उस स्थान पर पहुंचे जहां नाग उनका इंतजार कर राजा था । नागराज ने तेजाजी के लहू-लुहान शरीर को देख डसने से मना कर दिया । तब तेजाजी ने अपनी जीभ पर डसने का निवेदन किया । तेजाजी ने अपना भाला आगें किया और नाग ने भाले पर कुंडली मारकर तेजाजी की जीभ पर डस लिया ।

तेजाजी ने वहीं नजदीक ही भेड चरा रहे आंसू देवासी को अपना " मेमद मोलिया " दिया और पेमल तक पहुंचने का वचन लिया । लीलण को खरनाल माता, दादा, बहन और भाई भौजाई को खबर पहुंचाने भेजा ।

वर्तमान में किशनगढ़ तहसील के सुरसुरा गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी संवत 1160 ( 28 अगस्त 1103 ) नागराज के डसने से तेजाजी ने देह त्याग परलोक के लिए गमन किया ।

जब यह बात पेमल को पता चली तो बहुत दुखी हुई और माता बोदलदे से सत का नारियल मांगा और चिता बनाकर तेजाजी के साथ सूर्यदेव की अग्नि से सती हो गई । खरनाल में लीलण को बिना तेजाजी के आये देख बहन राजल सब समझ गई और धुवा तालाब की पाल पर धरती में समा गई । लीलण ने भी तेजाजी के वियोग में तालाब की पाल पर प्राण त्याग दिये ।


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तेजाजी कथा उपसंहार



वीर तेजाजी की कृषि वैज्ञानिक की सोच व योगदान के कारण किसान उनको कृषि का देवता मानने लग गए।नाग के प्रति अटल आस्था को देखते हुए जब भी तेजाजी का चित्र,मूर्ति आदि बनाते है तो उनके साथ काले नाग को कभी नहीं भूलते है।11वीं सदी में गायों के लिए बलिदान को सर्वोच्च बलिदान माना जाता है।

तेजाजी ने अपने कर्मों और आचरण से जनसाधारण को सद्मार्ग को अपनाने उस पर आगें बढ़ने के लिए प्रेरित किया । जात-पांत, छुआ-छूत आदि सामाजिक बुराइयों पर अंकुश लगाया । पण्डों के मिथ्या आडंबरों का विरोध किया, आज भी तेजाजी के मंदिरों में अधिकतर निम्न वर्णों के लोग ही पुजारी का काम करते हैं । इतिहास में समाज सुधार का इतना प्राचीन उदाहरण नहीं है । इस तरह तेजाजी ने अपने सद्कर्मों से जन-साधारण में एक चेतना जागृत की । कर्म, शक्ति, भक्ति व वैराग्य का जैसा तालमेल तेजाजी ने प्रस्तुत किया अन्यत्र दुर्लभ है ।


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भाद्रपद शुक्ल दशमी को पूरे भारतवर्ष में प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है । इस दिन जगह जगह पर तेजाजी के मेले लगते हैं, जन्मस्थली खरनाल में लाखों लोग तेजाजी के सम्मान में जुटते है । तेजाजी की गौ रक्षक एवं वचनबद्धता की गाथा लोक गीतों और लोक नाट्य के रूप में पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा और भक्तिभाव से गाई व सुनाई जाती है ।

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